संगीतमय वरागुर बालाजी मंदिर
संगीतमय वरागुर बालाजी मंदिर
तंजावूर जिले के पास कावेरी के तट पर स्थित एक छोटासा गाव है वरागुर। श्रीनिवास पेरुमल (विष्णु) को अर्पित एक प्राचीन मंदिर यहाँ है। लक्ष्मी नारायण देवता यहाँ पूर्व मुखी है। साधारणतः मंदिरो में एक मुख्य प्रतिमा जो पत्थर की बानी होती है और एक धातु से बानी छोटी प्रतिमा होती है। इस धातु से बानी मूर्ति को यात्रा या त्योहारो के दिन बहार लाया जाता है। देव श्रीनिवास यहाँ अपने सहचरियों श्री और भू देविओ के साथ है।
मंदिर के पुराणो के अनुसार , एक भक्त इन देवताओ की प्रतिमा लेकर इस स्थान पर रहा और बोहोत दिनों तक पूजा भी की। जब वह स्थान बदलने लगा तक मूर्तियाँ इस स्थान से नहीं हिल रही थी। इस कारन उस भक्त को यह सूचना मिली की यहाँ मंदिर बनवा कर विग्रहो को यही स्थापित किया जाये।
नारायण तीर्थ की जीवनी –
वरागुर का नाम लेते ही कर्नाटक संगीत के महान संगीतज्ञ श्री नारायण तीर्थ का नाम ध्यान में आता है। वें कृष्णा लीला तरंगिनी – श्री कृष्णा भजन के रचैता है। इनकी रचना रहस्यमई होती थी।
नारायण तीर्थ का नाम गोविंदा शास्त्री था। वें किशोर अवस्था में ही सन्यासी बन गए और शिवरामानन्द तीर्थ के शिष्य थे। वें नडुक्कवेरी गाव (कुम्बकोनम ) के पास रहते थे। एक रात उनके पेट में असहनीय दर्द उठा। उनके स्वप्ना में भगवान आये और उन्हें सुबह उठकर जिस पशु को पहले देखा हो उसके पीछे चलने का आदेश दिया। सुबह उठकर नारायण तीर्थ एक वराह के पीछे चल पड़े। चलते चलते वें भूपति राजपुरम (वरागुर ) पोहोचे। यहाँ पोहोचते ही वराह मंदिर में घुसकर गायब हो गया और इसके साथ ही नारायण तीर्थ का पेट दर्द भी चला गया। इस घटना के बाद नारायण तीर्थ यही रहने लगे
उन्होंने कृष्णा लीला थरांगीरी (जो श्रीमद् भगवतम पे आधारित है ) लिखी जिसमे १२ तरंगम है। इस रचना को करने के बाद उन्हें कृष्णा और हनुमान के दर्शन हुए। मंदिर के धार्मिक कार्यो से सम्बंधित भजन भी उन्होंने लिखे। भगवान को वें “श्री वराहपुरी वेंकटेश ” कहते थे। उन्होंने :पारिजात अपहरण नाटकम् ” भी लिखा। उनके लिखे हुए भजन आज भी मंदिर में गाये जाते है। तमिलनाडु के दिव्य नाम संगीत या अन्य संगीत समारोह में ये भजन प्रचलित है।
माना जाता है की इन्होने तिरुपूणथुरूति में समाधी प्राप्त की। शिवं सार ने अपनी रचना “येन्निपादिगलील मंथरगल ” में इस बात को गलत कहा है। उनके अनुसार तवो संत – जिनके नाम “नारायण तीर्थ ” – ऊपर दी गयी जीवनी वाले और “तीर्थ नारायण ” ये अलग अलग है। तिरुपूणथुरूति में समाधी प्राप्त करने वाले है तीर्थ नारायण जो शिव भक्त थे। शिवं सार के अनुसार श्री नारायण तीर्थ ने वरागुर में ही समाधी प्राप्त की क्युकी वें कभी इस स्थान से गए ही नहीं। इनकी महासमाधि समय के साथ साथ लुप्त हो गयी है।
आजकल तिरुपूणथुरुति को श्री नारायण तीर्थ का रूप भी कहते है और यहाँ वार्षिक भजन का समारोह भी होता है। संगीतज्ञ श्री नारायण को अर्पित भजन गाते है। श्री नारायण तीर्थ दक्षिण भारत के महान संगीतज्ञों में से एक थे।
त्यौहार – कृष्णा जन्मआष्ट्मी या कृष्णा जयंती यहाँ का सबसे बड़ा त्यौहार है। उरंडी उत्सव (दही हंडी ) बोहोत की जोरो शोरो से मनाते है। इस समय रुक्मिणी कल्याणम , वेदो का जाप , भगवत सप्तहहम भी किये जाते है। रुक्मिणी कल्याणम यानी रुक्मिणी और कृष्णा विवाह, जीव और परमात्मा के अद्वैतिक मिलाप का उदहारण है।
दर्शन की कालावधि : सुबह ७ से १२ , शाम ५ से ८ तक
दूरध्वनी क्रमांक : 04362 287510
Location: Varagoor, Tamil Nadu, India