ओम्कारेश्वर – जहाँ आदि शंकर अपने गुरु से मिले
ओम्कारेश्वर – जहाँ आदि शंकर अपने गुरु से मिले
ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश में स्थित है और भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह एक द्वीप है जहा नर्मदा नदी दो भागो में विभाजित होकर फिर से ओम्कारेश्वर पर्वत से होकर मिलती है। इस द्वीप को मंधाता या शिवपुरी भी कहते है। ऊपर से देखने पर “ॐ ” जैसा प्रतीत होता है। इसीलिए इस स्थान का नाम ओम्कारेश्वर पड़ा। नर्मदा के दूसरे भाग को हम कावेरी के नाम से जानते है।
ओम्कारेश्वर हमेशा से ही एक पावन स्थल रहा है। बोहोत संत, महात्मा और साधुगण यहाँ ध्यान करने आते थे। इस शहर में बनाये हुए पल हाल ही में बने है। पहले यहाँ आने के लिए नदी के तेज़ बहाव को तैर कर पार करना पड़ता था या नौका से पार करना पड़ता था। आज भी यहाँ आनंदमई माँ आश्रम , गजानन महाराज आश्रम इत्यादि है और दुनिया भर से लोग यहाँ एकांत में समय बिताने आते है।
आदि शंकराचार्य की गुफा –
इस स्थान के इतिहास का एक वर्णन ऐसा भी है कि , यहाँ श्री गोविन्द पदाचार्य जो श्री आदि शंकर के गुरु थे , नदी के पास एक गुफा में रहते थे। जब श्री शंकर ने योग धारण किया तब वें गुरु की खोज में केरल से चलते हुए यहाँ पोहोचे। गुरु से मिलते ही उन्होंने “आत्मा शदकम् /निर्वाणा शदकम् ” का भजन गया जिसका अर्थ है “शाश्वत आत्मा के ६ छंद”।
यह गुफा अब भी वह मौजूद है और ज्यादा बदलाव नहीं आया है। यहाँ आने पर २००० वर्ष पीछे लौट जाने का आभास होता है। इस गुफा से नर्मदा तक जाने के गुप्त रास्ते थे जिन्हे अब बंद कर दिया गया है। जब आदि शंकराचार्य दूसरी बार अपने गुरु से मिले तब नर्मदा में बाढ़ आई हुई थी और गुरु ध्यान मग्न थे। श्री शंकर ने नर्मदा से शांत होने की प्रार्थना की और बाढ़ रुक गया। इस घटना को गुफा में बानी कलाकृतियों में दर्शाया गया है।
इस स्थान का ज्योतिर्लिंग भी श्री शंकराचार्य ने ही निर्माण किया है और नर्मदा के पानी से यह स्थान हमेश भीगा रहता है। इस मंदिर के चारो ओर अनगिनत मंदिर है जैसे – सिद्धांत मंदिर, सोमनाथ मंदिर , ऋणमुक्तेश्वर मंदिर इत्यादि। ७ किमी के नर्मदा परिक्रमा मार्ग से इन सभी स्थानो के दर्शन हो सकते है। ये मंदिर भारत के इतिहास तथा वास्तुशिल्प को दर्शाते है। इस स्थान की नैसर्गिक सुंदरता , नदी, पहाड़ , पेड़ पौधे और अनुपम जलवायु अपने आप में एक अनुभव ही है !
बाण लिंग जो नर्मदा नदी से होकर आता है शिव लिंगो में सबसे ज्यादा पूजित है। जैसे शालिग्राम पत्थर (नेपाल) से श्री विष्णु की पूजा की जाती है वैसे ही बाण लिंगा पत्थरो से भगवान शिव की पूजा होती है। ओम्कारेश्वर और नर्मदा तट पर कई मंदिर है जिनमे बाण लिंग है। एक बड़ी नर्मदा परिक्रमा जो २७०० किमी की है भी साधुओ में लोकप्रिय है। यह परिक्रमा अनेक महीने तक चलती है। नर्मदा में डुबकी लगाना शुभ माना जाता है। कोटि तीर्थ घाट , चक्र तीर्थ घाट जैसे कई घाट है जहा पूजा होती है। नर्मदा के दोनों शाखाओँ में भी स्नान करना पावन माना जाता है।
नर्मदा जयंती या नर्मदा उत्सव , छठ पूजा की तरह ही होता है। माघ के महीने में ये उत्सव मनाते है। विशेष पूजाएं तथा महा आरती की जाती है। रात्रि के समय डीप जलाए जाते है और पटाखे जलाकर ,दरिद्रो में खाना बाटा जाता है।