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दैवतहिं कुरल नमक पुस्तक की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

दैवतहिं कुरल नमक पुस्तक की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें 

जगद्गुरु श्री श्री चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती स्वामिगल द्वारा लिखी गयी दैवतहिं कुरल को देवताओ की वाणी भी समझा जाता है।   यह ७ अध्यायों की रचना है। पहले दो अध्याय अंग्रेजी में “हिन्दू धर्म ” के नाम से अनुवादित है। Kamakoti.org पर सम्पूर्ण रचना उपलब्ध है।

इस लेख से हम किसी भी अध्याय तथा रचना को फिर से दोहराना नहीं चाहते बल्कि इसके आध्यात्मिक महत्त्व को समझना चाहते है।  इस पुस्तक में कुछ अपूर्वा बाते कही गयी है –

Man – अंग्रेजी का यह शब्द मनुष्य के संस्कृत शब्द से आया है जो मनु (जग में पहला व्यक्ति ) से प्राप्त हुआ है।  तमिल का शब्द मनुष्यम भी एहि से प्राप्त हुआ है

बिहार – पूर्णे काल में यह बुद्ध विहारों से भरा था।  इसी तरह विहार बिहार में परिवर्तित हुआ।

तेलुगु – आंध्र प्रदेश ३ और से शिव मंदिरो से घिरा हुआ है।  दक्षिण में कालाहस्ती , श्रीसैलम उत्तर में और कोटि लिंग पश्चिम में।  इसे त्रि लिंग देश भी कहा जाता है।  त्रिलिंग तेलुगु में परिवर्तित हुआ।

यजमान – वेदो के अनुसार यज्ञ करवाने वाले को यजमान कहते है. तमिल में भी इस शब्द का यही अर्थ है।

आदम – आत्मा (soul ) और हवा (Eve ) यानी जीवात्मा का मिलम ही अद्वैतिक धर्म है।

Hour – होरा (होरा ज्योतिष शास्त्र ) से प्राप्त हुआ

Geometry – ज्या का मतलब संस्कृत में दुनिया है और मिटी है मापना

Iran – आर्यन शब्द से

Zorastar – गुजरात के सौराष्ट्र का निवासी था। सौराष्ट्र जोराष्ट्र में परिवर्तित हुआ

Nocturnal – संस्कृत के नक्त माने रात्रि से प्राप्त हुआ।  जर्मन भाषा में भी ऐसा ही शब्द है

Aztec (Civilization) – आस्तिक इस शब्द से पाया हुआ – जिसका अर्थ है देवताओ में श्रद्धा रखने वाले

Sahara – सागरा (संस्कृत – सागर) से प्राप्त हुआ।  सहारा प्रदेश की मरुभूमि एक समय पर सागर ही था।

brow  – संस्कृत शब्द बुरौ से प्राप्त हुआ

सदंगु  (तमिल ) – किसी भी पारम्परिक कार्य को कहते है। सदंगु का अर्थ है षद अंग याने ६ अंग . वेदो के ६ अंग जैसे चाँद , ज्योतिष इत्यादि

चत्रम (तमिल) – वेदो के अनुसार चत्र यज्ञ।  इस यज्ञ का कोई यजमान नहीं होता।  या सबके लिए होता है।  आज इस शब्द का अर्थ निःशुल्क रहने की जगह है।

उमत्तम पू  (तमिल ) -उमत्तम का अर्थ है पागलपन। इस फूल से लोगो में पागलपन आ सकता है।

एरुक्कम पू (तमिल) – संस्कृत शब्द अर्का से प्राप्त हुआ है।

सोंथम (तमिल) – मतलब कई रिश्तेदार

स्वदानधम (स्व+दनधम ) – स्व माने स्वयं

थाली – संसृत शब्द जिसका मतलब है ताड़ का पत्ता

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पूर्णिमा ने नक्षत्र से प्राप्त हुए ये महीने ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तैयार किये गए है –

चित्तरै – चैत्र नक्षत्र की पूर्णिमा
वैकसी – विशाखा नक्षत्र
आनि – पहले इसे अनुशी कहते थे।  अनुशा नक्षत्र
आदि – आषाढ़ नक्षत्र
आवनी – श्रावण  नक्षत्र। पहले श्रावणी कहा जाता था
पुरात्तस्य – प्रोष्ठपथ नक्षत्र (पूर्व तथा उत्तर ) महीने का नाम था प्रोष्ठपथी
लयपस्सी – अश्विनी नक्षत्र
कार्तिगाई – कृत्तिका/कार्तिक नक्षत्र
मर्घजी – मार्घशीर्ष नक्षत्र
थाई – पौष नक्षत्र।  पहले थ्रिष्यम कहा जाता था।
मासी – माघ नक्षत्र
पंगुनी – फाल्गुन नक्षत्र 

Location: Kanchipuram, Tamil Nadu, India

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